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अम्बेडकर और दलित आन्दोलन (Ambedkar aur dalit aandolan) / आनंद तेलतुंबड़े ( Anand Teltumbde); translated by कृष्ण सिंह (Krishna Singh).

By: Contributor(s): Language: English Publication details: Delhi : Granth Shilpi, 2016.Description: 238 p. : 23 cmISBN:
  • 9788179171806 (hbk.)
Subject(s): DDC classification:
  • 305.5688 TEL
Summary: यह किताब बाबा साहब अंबेडकर के जीवन के कुछ विशेष पहलुओं पर प्रकाश डालती है। इस पुस्तक में अंबेडकर के व्यक्तित्व के कुछ पक्षों को सामने रखा गया है जिससे उनके व्यक्तित्व को समझने में पाठक को मदद मिल सके। दलित आंदोलन के विभिन्न पक्षों को समग्रता में देखने का आग्रह पुस्तक का लेखक करता है। बिना सग्रता में देखे परखे अंबेडकर का सही मूल्यांकन संभव नहीं है। वह अंबेडकरवादियों के समक्ष व्याप्त संकटों और दलित आंदोलन की निराश के कारणों को स्पष्ट करते हुए भावी चुनौतियों को भी सामने रखते हैं। आंनद तेलतुम्बड़े दलित आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में राज्य, संविधान, लोकतंत्र, समाजवाद, लैंगिक समानता, मार्क्स और साम्यवाद, क्रांति, बौद्ध धर्म, रणनीति और कार्यनीति के पहलू, एक आदर्श की अवधारणा, दलितों के आंदोलन के लिए 'अंबेडकर, और क्रांतिकारी विचारक के रूप में 'अंबेडकर, पर विमर्श करते हुए दलितों के मुक्ति संघर्ष के सही रास्ते की तलाश करते हैं। यह पुस्तक समाज में मौजूद अंतर्विरोधों को सर्वाधिक पीड़ित के दृष्टिकोण से देखने और उनके समाधान के लिए काम करने, भारत में एक लोकतांत्रिक क्रांति के लिए अंबेडकर के काम में प्रयुक्त मौलिक खाके की प्रासंगिकता और वैधता पर जोर देती है ।
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यह किताब बाबा साहब अंबेडकर के जीवन के कुछ विशेष पहलुओं पर प्रकाश डालती है। इस पुस्तक में अंबेडकर के व्यक्तित्व के कुछ पक्षों को सामने रखा गया है जिससे उनके व्यक्तित्व को समझने में पाठक को मदद मिल सके।

दलित आंदोलन के विभिन्न पक्षों को समग्रता में देखने का आग्रह पुस्तक का लेखक करता है। बिना सग्रता में देखे परखे अंबेडकर का सही मूल्यांकन संभव नहीं है। वह अंबेडकरवादियों के समक्ष व्याप्त संकटों और दलित आंदोलन की निराश के कारणों को स्पष्ट करते हुए भावी चुनौतियों को भी सामने रखते हैं। आंनद तेलतुम्बड़े दलित आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में राज्य, संविधान, लोकतंत्र, समाजवाद, लैंगिक समानता, मार्क्स और साम्यवाद, क्रांति, बौद्ध धर्म, रणनीति और कार्यनीति के पहलू, एक आदर्श की अवधारणा, दलितों के आंदोलन के लिए 'अंबेडकर, और क्रांतिकारी विचारक के रूप में 'अंबेडकर, पर विमर्श करते हुए दलितों के मुक्ति संघर्ष के सही रास्ते की तलाश करते हैं। यह पुस्तक समाज में मौजूद अंतर्विरोधों को सर्वाधिक पीड़ित के दृष्टिकोण से देखने और उनके समाधान के लिए काम करने, भारत में एक लोकतांत्रिक क्रांति के लिए अंबेडकर के काम में प्रयुक्त मौलिक खाके की प्रासंगिकता और वैधता पर जोर देती है ।

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