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हमारे अतीत - III (Hamare ateet - III) : भाग 2 (bhag - 2) : कक्षा 8 के लिए इतिहास की पाठयपुस्तक (kaksha 8 ke liye itihas ki pathya pustak) / प्रकाशक (published by) राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (National Council of Educational Research and Training) (NCERT).

By: Material type: TextTextLanguage: Hindi Publication details: New Delhi : National Council of Educational Research and Training) (NCERT), 2008.Description: viii, 171 p. : col. ill., maps ; 27 cmISBN:
  • 978-8174508478 (pbk.)
Subject(s): DDC classification:
  • 23 954
Contents:
1. कैसे, कब और कहाँ -- 2. व्यापार से साम्राज्य तक - कंपनी की सत्ता स्थापित होती है। -- 3. ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना -- 4. आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पन 5. जब जनता बग़ावत करती है - 1857 और उसके बाद -- 6. उपनिवेशवाद और शहर - एक शाही राजधानी की कहानी।
Summary: यह पुस्तक बहुत सारे इतिहासकारों, शिक्षाविदों और शिक्षकों की सामूहिक कोशिशों का फल है। इन अध्यायों के लेखन और संशोधन में कई माह लगे हैं। ये अध्याय कार्यशालाओं में हुई चर्चाओं और ई-मेल पर हुए विचारों के आदान-प्रदान से उपजे हैं। इस प्रक्रिया में प्रत्येक सदस्य ने प्रकारांतर से अपनी क्षमता के अनुरूप योगदान दिया है। बहुत सारे व्यक्तियों और संस्थानों ने इस किताब को तैयार करने में मदद दी। प्रोफ़ेसर मुज़फ्फर आलम और डॉ. कुमकुम रॉय ने इसके मसविदे पढ़े और बदलाव के लिए कई अहम सुझाव दिए किताब में दिए गए चित्रों के लिए हमने कई संस्थाओं के संग्रहों का इस्तेमाल किया। दिल्ली शहर और 1857 की घटनाओं के बहुत सारे चित्र अल्काज़ी फ़ाउंडेशन फ़ॉर दि आर्ट्स से लिए गए हैं। ब्रिटिश राज के बारे में लिखी गयी उन्नीसवीं सदी की बहुत सारी सचित्र पुस्तकें इंडिया इंटरनैशनल सेंटर के बहुमूल्य इंडिया कलेक्शन का हिस्सा थीं। हम सुनील जाना साहब के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने नब्बे साल की उम्र पार करने के बाद भी अपने चित्रों को छाँटने में मदद और उन्हें पुनः प्रकाशित करने की अनुमति दी। चालीस के दशक की शुरुआत से ही वह आदिवासी क्षेत्रों की पड़ताल कर रहे हैं और उन्होंने असंख्य समुदायों के दैनिक जीवन को अपने कैमरे में दर्ज किया है। इनमें से कुछ चित्र अब प्रकाशित हो चुके हैं (द ट्राइबल्स ऑफ़ इंडिया, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2003) तथा बहुत सारे चित्र इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में सुरक्षित हैं।
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1. कैसे, कब और कहाँ --
2. व्यापार से साम्राज्य तक - कंपनी की सत्ता स्थापित होती है। --
3. ग्रामीण क्षेत्र पर शासन चलाना --
4. आदिवासी, दीकु और एक स्वर्ण युग की कल्पन
5. जब जनता बग़ावत करती है - 1857 और उसके बाद --
6. उपनिवेशवाद और शहर - एक शाही राजधानी की कहानी।

यह पुस्तक बहुत सारे इतिहासकारों, शिक्षाविदों और शिक्षकों की सामूहिक कोशिशों का फल है। इन अध्यायों के लेखन और संशोधन में कई माह लगे हैं। ये अध्याय कार्यशालाओं में हुई चर्चाओं और ई-मेल पर हुए विचारों के आदान-प्रदान से उपजे हैं। इस प्रक्रिया में प्रत्येक सदस्य ने प्रकारांतर से अपनी क्षमता के अनुरूप योगदान दिया है।

बहुत सारे व्यक्तियों और संस्थानों ने इस किताब को तैयार करने में मदद दी। प्रोफ़ेसर मुज़फ्फर आलम और डॉ. कुमकुम रॉय ने इसके मसविदे पढ़े और बदलाव के लिए कई अहम सुझाव दिए किताब में दिए गए चित्रों के लिए हमने कई संस्थाओं के संग्रहों का इस्तेमाल किया। दिल्ली शहर और 1857 की घटनाओं के बहुत सारे चित्र अल्काज़ी फ़ाउंडेशन फ़ॉर दि आर्ट्स से लिए गए हैं। ब्रिटिश राज के बारे में लिखी गयी उन्नीसवीं सदी की बहुत सारी सचित्र पुस्तकें इंडिया इंटरनैशनल सेंटर के बहुमूल्य इंडिया कलेक्शन का हिस्सा थीं। हम सुनील जाना साहब के प्रति कृतज्ञ हैं जिन्होंने नब्बे साल की उम्र पार करने के बाद भी अपने चित्रों को छाँटने में मदद और उन्हें पुनः प्रकाशित करने की अनुमति दी। चालीस के दशक की शुरुआत से ही वह आदिवासी क्षेत्रों की पड़ताल कर रहे हैं और उन्होंने असंख्य समुदायों के दैनिक जीवन को अपने कैमरे में दर्ज किया है। इनमें से कुछ चित्र अब प्रकाशित हो चुके हैं (द ट्राइबल्स ऑफ़ इंडिया, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2003) तथा बहुत सारे चित्र इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में सुरक्षित हैं।

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