Amazon cover image
Image from Amazon.com

अतिक्रमण (Atikraman) / कुमार अंबुज (Kumar Ambuj)

By: Material type: TextTextLanguage: Publication details: Delhi : Radhakrishna Prakashan, 2019.Edition: 2nd edDescription: 124 p. ; 22 cmISBN:
  • 9788171197514 (hbk.)
Subject(s): DDC classification:
  • 23 891.431 AMB
Contents:
कोई है माँजता हुआ मुझे -- अपेक्षा -- अव्यक्त -- मेरा प्रिय कवि -- एक और शाम -- असंबद्ध -- अतिक्रमण -- बहस की ढलान पर -- एक कम है -- कला का कोना -- रेखागणित -- माध्यम -- भाषा से परे -- अँधेरे के एकांत में -- अनुभव -- परिचय बार-बार -- जब तक हूँ -- कवि व्याप्ति मोह -- काम -- संगीत है -- चित्र विचित्र -- एक बार फिर -- मानकीकरण -- मैं ऐसे आततायी को जानता हूँ -- बीज -- एक सुबह की डायरी
Summary: हमारे दौर की कविता के बारे में कभी-कभी एक आलोचना यह भी सुन पड़ती है कि ज्यादातर कवियों के पहले कविता-संग्रह ही उनके सबसे अच्छे संग्रह साबित होते हैं, दूसरे संग्रहों तक आते-आते उनका प्रकाश मंद हो जाता है, यथार्थ की काली गहराइयों में जाकर उनकी लालटेनें बुझने लगती हैं। इस बात में अगर कोई सचाई है तो कुमार अंबुज को उसके अपवाद की तरह देखा जा सकता है। अंबुज का पहला कविता-संग्रह 1992 में प्रकाशित हुआ था और सिर्फ़ दस वर्ष के अंतराल में उनके चौथे संग्रह का छपना सबसे पहले यह बतलाता है कि इस कवि के पास कहने के लिए बहुत कुछ है : निरवरधि काल और विपुल पृथ्वी है, बल्कि एक पूरा सौरमंडल है, निर्वात और सघन पदार्थों में से गुज़रना उसका रोज़ का काम है। वायुमंडल की सैर करते-करते वह ग्रह-नक्षत्रों को खँगोल लेता है, मंगल ग्रह के लोहे को अपने शरीर और रक्त में महसूस करता है और अंतत: अपनी पृथ्वी पर लौट आता है। इस अछोर क़ायनात को खोजने-जानने के लिए कुमार अंबुज के पास उतनी ही विस्तृत भाषा भी है जिस पर उन्हें इतना विश्वास है कि एक कविता में वे 'भाषा से परे का यह दुर्गम पहाड़' भी 'भाषा की लाठी के सहारे ही' पार करना चाहते हैं। इस संग्रह की पहली और बीज-कविता जैसी रचना में वे ख़़ुद को एक ऐसे पुराने ताँबे के पात्र की तरह देखते हैं जिसे कोई 'इतिहास की राख से माँजता है' और 'एक शब्द माँजता है मुझे/एक पंक्ति माँजती रहती है/अपने खुरदुरे तार से।'
Item type:
Tags from this library: No tags from this library for this title. Log in to add tags.
Star ratings
    Average rating: 0.0 (0 votes)
Holdings
Item type Current library Shelving location Call number Status Date due Barcode Item holds
Books Books Gulbanoo Premji Library, Azim Premji University, Bengaluru 4th Floor 891.431 AMB (Browse shelf(Opens below)) Available 46510
Total holds: 0

कोई है माँजता हुआ मुझे -- अपेक्षा -- अव्यक्त -- मेरा प्रिय कवि -- एक और शाम -- असंबद्ध -- अतिक्रमण -- बहस की ढलान पर -- एक कम है -- कला का कोना -- रेखागणित -- माध्यम -- भाषा से परे -- अँधेरे के एकांत में -- अनुभव -- परिचय बार-बार -- जब तक हूँ -- कवि व्याप्ति मोह -- काम -- संगीत है -- चित्र विचित्र -- एक बार फिर -- मानकीकरण -- मैं ऐसे आततायी को जानता हूँ -- बीज -- एक सुबह की डायरी

हमारे दौर की कविता के बारे में कभी-कभी एक आलोचना यह भी सुन पड़ती है कि ज्यादातर कवियों के पहले कविता-संग्रह ही उनके सबसे अच्छे संग्रह साबित होते हैं, दूसरे संग्रहों तक आते-आते उनका प्रकाश मंद हो जाता है, यथार्थ की काली गहराइयों में जाकर उनकी लालटेनें बुझने लगती हैं। इस बात में अगर कोई सचाई है तो कुमार अंबुज को उसके अपवाद की तरह देखा जा सकता है। अंबुज का पहला कविता-संग्रह 1992 में प्रकाशित हुआ था और सिर्फ़ दस वर्ष के अंतराल में उनके चौथे संग्रह का छपना सबसे पहले यह बतलाता है कि इस कवि के पास कहने के लिए बहुत कुछ है : निरवरधि काल और विपुल पृथ्वी है, बल्कि एक पूरा सौरमंडल है, निर्वात और सघन पदार्थों में से गुज़रना उसका रोज़ का काम है। वायुमंडल की सैर करते-करते वह ग्रह-नक्षत्रों को खँगोल लेता है, मंगल ग्रह के लोहे को अपने शरीर और रक्त में महसूस करता है और अंतत: अपनी पृथ्वी पर लौट आता है। इस अछोर क़ायनात को खोजने-जानने के लिए कुमार अंबुज के पास उतनी ही विस्तृत भाषा भी है जिस पर उन्हें इतना विश्वास है कि एक कविता में वे 'भाषा से परे का यह दुर्गम पहाड़' भी 'भाषा की लाठी के सहारे ही' पार करना चाहते हैं। इस संग्रह की पहली और बीज-कविता जैसी रचना में वे ख़़ुद को एक ऐसे पुराने ताँबे के पात्र की तरह देखते हैं जिसे कोई 'इतिहास की राख से माँजता है' और 'एक शब्द माँजता है मुझे/एक पंक्ति माँजती रहती है/अपने खुरदुरे तार से।'

There are no comments on this title.

to post a comment.

Total Visits to Site (September 2024 onwards):best free website hit counter